
मैं जो डुबा था गुनाहों में..
मैं जो डुबा था गुनाहों में
था मैं मदहोश, जग की राहों में
एक आवाज़ मुझको यूं आई
बेटे आ ले-लू बाहों में
लौट आ... लौट आ... -2
कैसी मीठी मधुर थी उसकी ध्वनी
मेरी खातिर सलीब राह चुनी
वो था बे-एब, कुछ गुनाह ना था
था मेरे वास्ते गुनाह जो बना
प्यार ही प्यार था निगाहों में
था मैं मदहोश…
सब सहे जुर्म, खाए थे कोड़े
चोर डाकू थे आसपास खड़े
यो दुश्मनों ने ऐसा जाल बुना
बरमला उसका था तमाशा बना
कीलें हाथों में और थे पांव में
था मैं मदहोश…
धार उसके लहू की फिर जो बही
जिंदगी असल में है देती वही
प्यार की हद न थी कोई इंतेहा
उसके लहू से ही मिली है सिफा
बादशाह वो है बादशाहों में
था मैं मदहोश…